ताजिया की शुरुआत कैसे हुई?

मुहर्रम को गमों का महीना कहा जाता है क्योंकि इसी महीने में कर्बला कि जंग हुई थी जिसमें हुसैन रजी. को शहादत नसीब हुई थी। मुहर्रम वाले दिन भारत में बहुत अधिक मात्रा में ताजिया और जुलूस निकाला जाता है और मातम मनाया जाता है।
लेकिन सवाल ये है कि क्या ताजिया निकालना इस्लाम का हिस्सा है? इसका जवाब है नहीं। अगर ताजिया इस्लाम का हिस्सा नहीं है तो आखिर क्यों ताजिया निकला जाता है?
इसका जवाब ये है?
जब तैमूर ईरान, अफगानिस्तान, इराक और रूस को हराकर भारत पहुंचा तो उसका सामना मुहम्मद बिन तुगलक से हुआ।तुगलक को हराकर तैमूर खुद को शहंशाह घोषित कर दिया।वह हर साल मुहर्रम पर इराक जाया करता था लेकिन एक साल बीमार होने के कारण वह नहीं जा सका। उसके दरबारियों ने उसे खुश करने के लिए देश भर के शिल्पकारों को बुलाकर हुसैन रजी. के कब्र जैसा ढांचा बनवाया। और पूरे जंग की चित्तवृत्ति आंखो से दिखाया जो की तैमूर को बहुत पसंद आया और लोगों को भी काफी अच्छा लगा। बस उसी समय से हर साल ताजिया बनाया जाने लगा और मुहर्रम के दिन तलवार बाजी, लट्ठ बाजी और भी युद्ध कलाओं का प्रदर्शन किया जाने लगा। धीरे धीरे यह प्रथा परम्परा में बदल गई। और भारत समेत पाकिस्तान बांग्लादेश और म्यामार में भी ताजिया और जुलूस निकाला जाने लगा।
लेकिन खुद तैमूर के देश उज़्बेकिस्तान या कजाकिस्तान और शिया बाहुल्य देशों में भी ताजिया का कोई जिक्र नहीं मिलता है। यहां तक कि अरब में भी इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता है।
ताजिया एक शहंशाह द्वारा चलाई गई प्रथा है और इससे ज्यादा कुछ नहीं। मातम मनाना,छाती पीटना भी गलत माना गया है।
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