मंदिर तोड़ने वाले शासकों के नाम
भारत में राजनीति करने वाले लोग सिर्फ मध्यकालीन इतिहास तक ही जाते हैं उसके आगे नहीं जाते अगर वे उससे भी आगे जाकर देखें तो उनको और भी मंदिरों के तोड़े जाने का साक्ष्य मिलेगा। सबसे बड़ी बात! क्या मध्यकालीन भारत में मस्जिदों को भी तोड़ा गया था उसपर कभी कोई चर्चा नहीं होती।
भारत में हमेशा मंदिर विध्वंस और लूट के लिये और हिन्दुओं की दयनीय हालत के लिए मुस्लिम शासकों को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है। मुस्लिम शासकों के शासन को इस तरह बताया जाता है कि इससे बड़ा जुल्म दुनिया में कहीं नहीं हुआ है। हम सभी जानते हैं कि जनता के सहयोग के बिना कोई हुकूमत कर ही नहीं सकता. अगर मुस्लिम शासक इतने क्रूर और जालिम होते तो 500 साल तक हुकूमत नहीं कर पाते।
दैनिक जागरण में छपी एक खबर
मुसलमानों पर मंदिर तोड़ने और लूटने का इल्जाम लगाया जाता है, पर ये कहना कि मंदिर को सिर्फ धार्मिक कारण से तोड़ा गया, गलत होगा. मैं इनकार नहीं करता कि मंदिर तोड़ने में धार्मिक
कारण नहीं हैं मगर उससे भी ज्यादा मंदिर में अकूत धन-संपत्ति इसका मुख्य कारण है. उस समय भारत के मंदिरों में अपार धन-संपत्ति होती थी। बल्कि यूं कहें कि उस समय मंदिरों के पुरोहित या ब्राह्मण शक्तिशाली होते थे, हिन्दू राजा और महाराजा को भी इनके अधीन ही रहना पड़ता था। उन्हें मंदिरों को दान देना पड़ता था और साथ ही जनता को भी मंदिरों में चढ़ावा करना पड़ता था।
![]() |
औरंगजेब द्वारा दान की गई जमीन |
कारण नहीं हैं मगर उससे भी ज्यादा मंदिर में अकूत धन-संपत्ति इसका मुख्य कारण है. उस समय भारत के मंदिरों में अपार धन-संपत्ति होती थी। बल्कि यूं कहें कि उस समय मंदिरों के पुरोहित या ब्राह्मण शक्तिशाली होते थे, हिन्दू राजा और महाराजा को भी इनके अधीन ही रहना पड़ता था। उन्हें मंदिरों को दान देना पड़ता था और साथ ही जनता को भी मंदिरों में चढ़ावा करना पड़ता था।
![]() |
वाराणसी कॉरिडोर बनाते समय भाजपा सरकार द्वारा तोड़े गए मंदिरों के अवशेष |
जैसा कहा जाता है कि महमूद ग़ज़नवी ने 17 आक्रमण किये तो आप को बताता चलूं कि गज़नवी भारत में इस्लाम फैलाने या प्रचार करने नहीं आया था, वो यहां सिर्फ दौलत के लालच में आता था और मंदिरो को लूट कर चला जाता था, आप को ये भी मालूम होना चाहिये कि दो बार भारत से बुरी तरह पराजित भी हो कर गया है। वो छोटे-छोटे मंदिरों को लूटता भी नहीं था. सिर्फ बड़े मंदिरों को निशाना बनाता था. अगर उसका मकसद मंदिर तोड़ना होता या इस्लाम फैलाना होता तो वो यहां रुक जाता।
मैं इस लेख में ये बताना चाहता हूं कि मंदिरों को सिर्फ मुसलमानों ने ही नहीं लूटा बल्कि हिन्दू राजाओं ने भी बहुत से मंदिर लूटे व तोड़े। सन 642 में पल्लव राजा नरसिंहवर्मन ने चालुक्यों की राजधानी वातापी में गणेश के मंदिर को लूटा और उसके बाद तोड़ दिया। आठवीं सदी में बंगाली सैनिकों ने विष्णु मंदिर को तोड़ा। 9वीं सदी में पांड्य राजा सरीमारा सरीवल्लभ ने लंका पर आक्रमण कर वहां सभी मंदिरों को नष्ट कर दिया। 11वीं सदी में चोल राजा ने अपने पड़ोसी चालुक्य, कालिंग, और पाल राजाओं से मूर्तियां छीन कर अपने राजधानी मे स्थापित की। 11वीं सदी के मध्य में राजाधिराज ने चालुक्य को हराया और शाही मंदिरों को लूट कर उनका विनाश कर दिया। 10वीं शताब्दी में राष्ट्रकूट राजा इंद्र तृतीय ने जमुना नदी के पास कल्पा में कलाप्रिया मंदिर को नष्ट कर दिया।
कश्मीर के लोहार राजवंश के आखिरी राजा हर्ष (1089-1101) ने कश्मीर के सभी मंदिरों को नष्ट करने और लूट लेने का हुक्म दिया था। बताया जाता है कि उस समय सभी मंदिरों को लूट कर मूर्तियां जो कि सोने की थी उसे पिघला कर पूरी दौलत उसने अपने पस रख ली थी। मारेटो ने जब टीपू सुल्तान पर हमला किया तो श्रीरंगपट्टम के मंदिर को भी तोड़ दिया। पुष्पमित्र जो शुंग शासक और वैदिक धर्म का संस्थापक था, गद्दी पर बैठते ही उसने सभी बौद्ध मंदिरों को तोड़ने का आदेश दे दिया। उसने ये भी एलान कर दिया के जो भी एक बौद्ध भिक्षु का सिर काट कर लायेगा उसे एक सोने का सिक्का दिया जायेगा। लाखों बौद्ध भिक्षुओं को मार दिया गया। पुष्यमित्र ने उस पेड़ को भी काट दिया जिसके नीचे महात्मा बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। बौध भिक्षु अपनी जान बचा कर मुल्क से पलायन करने लगे और वे चीन, जापान, थाइलैंड, सिंगापुर की तरफ भागे। इतिहासकारों का कहना है कि लगभग बौद्धों का खात्मा ही हो गया था।
सबसे बड़ी बात मुस्लिम शासकों को भारत में प्रवेश करने और युद्ध करने की सलाह भी हिंदू राजाओं और पुरोहितों ने ही दिया है। मुस्लिम राजाओं द्वारा दलितों के उत्थान के लिए और देवदासी प्रथा बंद करने के लिए भी मंदिरों को तोड़ा गया। तब बहुत से मंदिरों में दलित लड़कियों को देवदासी बना कर रखा जाता था और उनके साथ शारीरिक शोषण होता था। ऐसी ही एक घटना है कच्छ की महारानी और महराजा औरंगजेब के साथ यात्रा कर रहे थे,यात्रा के दौरान काशी में पड़ाव डाले और रानियां गंगा नहाने चली गईं सभी वापस आ गईं लेकिन कच्छ की रानी लापता थी खोज शुरू होने के बाद वह मंदिर के तहखाने में रोती हुई मिली उनके गहने गायब थे इसपर औरंगजेब क्रुद्ध होकर उस मंदिर को तोड़ने का आदेश दे दिया। एक हिंदू महारानी के सम्मान के लिए उसने ऐसा किया था।
ये मंदिर के बगल में जो मस्जिदे आज हमे बनी दिखाई देती हैं, वो मुगल काल की सुलह कुल नीति के तहत भाईचारा बढ़ाने के लिए उस समय के धर्म निरपेक्ष शासको ने बनवाई थी, लेकिन आज उनका अलग मतलब निकाला जा रहा है। भाई अगर वो कट्टर मुसलमान होते तो मंदिर का चिन्ह भी न छोड़ते, कौन रोकता उन्हें, उनका शासन था। ये सारी गलत फहमी अंग्रेजो की फैलाई हुई है, उनकी नीति ही थी कि बांटो और राज करो। भारत में कोई भी मस्जिद, मंदिर तोड़कर नहीं बनी, हाँ बौद्ध मठ तोड़कर मंदिर जरूर बने हैं। मैं तो चाहता हूँ, पूरे देश में मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा बिल्कुल अगल बगल में ही बनने चाहिए, जिससे दूसरे धर्मो के बारे में सबको सही जानकारी रहे और सबको ये अहसास रहे कि ईश्वर अगर है, तो एक ही है, लोगों के तरीके अलग हैं।
No comments:
Post a Comment
Please do not enter any spam link in comment box.